22 August, 2009

आहट तुम्हारे आने की प्रभु आज मेरे द्वार ......


आहट तुम्हारे आने की

प्रभु आज मेरे द्वार

पट तो खुला घर का है

बंद मन के हैं किवाड़

तुमको तो पता है की

बिस्वास तुम्हारा

है एक मात्र मेरा

जीने का सहारा

विचलित न करती मुझको

जीवन की रणभूमि

जो पूर्ण से आया हो

उसमे फिर क्या कमी

बस धुल हटाना है प्रभु

मन पे जो पड़ा

भक्ति मेरी निश्छल है

तेरे द्वार मैं खड़ा

बस तेज तिलक लगादो

मेरे ललाट पर

की जाग जाए वो

जो सोया हुआ अंदर

और फिर हो अभिव्यक्त

शक्ति अनंत जो

पता चले ये जग में

हर कण में तुम्ही हो

हर साँस में तुम्ही

हर धड़कन में तुम्ही हो

ये वसुंधरा पे

गगन में तुम्ही हो

तुम्ही हो और कुछ नहीं मौजूद यहाँ पर

देख सकूँ तुमको वो नेत्र दो प्रखर ................



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