देश अपना तो सदियों से है अटल
ये कैसी खलबली कैसा है कोलाहल
हैं मुट्ठी भर वे लोग जो प्रमाणपत्र बांटते
बनाते हमको हैं सेक्युलर या कम्युनल
घृणा का मन्त्र मात्र सत्ता का पर्याय है
जन जन में हो दुरी यही उपाय है
चन्दन हो टोपी हो श्रद्धा मेरी अपनी
इस बात पर क्यूँ फिर इतनी बेचैनी
ये कौन सा भारत जिसका निर्माण हो रहा
ढकेल के पतन पे गुणगान हो रहा
चोरों के फ़ौज को करके इकठा
सम्पूर्ण देश का अपमान हो रहा
हिन्दू होना क्या कोई गुनाह है
तुम्हारी क्या मनशा क्या तुम्हारी चाह है
अलगाव का डफली बजाते रहो तुम
प्रजातंत्र का खिल्ली उड़ाते रहो तुम
´सर्वे भवन्तु सुखिनः ´ में हमारी अटूट आस्था
भारत के उन्नति का है ये मात्र रास्ता ..........
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