23 June, 2013

उत्तराखण्ड त्रासदी




तांडव प्रकृति का जो है घाव दे गया 
मानस पटल पे मेरे तनाव दे गया 
की शोक की सीमा क्या अपनों तक सीमित है  
अपने अस्तित्व से ही अलगाव दे गया 

बस आंकड़ो के क्रम में कुछ आज खोया है 
मन मेरा बार बार उध्वेलित हो रोया है 
क्या वक़्त आ गया है पुनः विचार हो 
अंकुश लगे न और आगे अत्याचार हो 
प्रकृति से खिलवाड़ है कौन जिम्मेदार 
कैसी व्यवस्था है ये है कौन सी सरकार 

सेना के लोग हैं जो जीवन बचा रहे 
नेता हवा में युहीं चक्कर लगा रहे 
कुछ दंभ में हैं चूर की हम है सेकुलर 
तू आम आदमी है गर मरता है तो मर 

संवेदना मेरी ये संकल्प बनेगी 
भारत निर्माण का विकल्प बनेगी 
सृजन पुनः विनाश के बेदी पे होना है 
नम आज ह्रदय का हर एक कोना  है .......


 


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