मानस पटल पे मेरे तनाव दे गया
की शोक की सीमा क्या अपनों तक सीमित है
अपने अस्तित्व से ही अलगाव दे गया
बस आंकड़ो के क्रम में कुछ आज खोया है
मन मेरा बार बार उध्वेलित हो रोया है
क्या वक़्त आ गया है पुनः विचार हो
अंकुश लगे न और आगे अत्याचार हो
प्रकृति से खिलवाड़ है कौन जिम्मेदार
कैसी व्यवस्था है ये है कौन सी सरकार
सेना के लोग हैं जो जीवन बचा रहे
नेता हवा में युहीं चक्कर लगा रहे
कुछ दंभ में हैं चूर की हम है सेकुलर
तू आम आदमी है गर मरता है तो मर
संवेदना मेरी ये संकल्प बनेगी
भारत निर्माण का विकल्प बनेगी
सृजन पुनः विनाश के बेदी पे होना है
नम आज ह्रदय का हर एक कोना है .......
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