30 June, 2013

गेहूं भी चाहिए ,चाहिए गुलाब भी

हम अपने गाँव को युहीं अचानक छोड़ आये हैं 
पाया है बहुत थोड़ा ज्यादा तो गवायें हैं 
न सौंधी खुशबू माटी की न खेतों की हरियाली  
अपना कौन है यहाँ जो हैं सभी पराये हैं 
सोंचा था न सपने में कभी दिन ऐसा आएगा 
ह्रदय के भाव पर मस्तिष्क आधिपत्य पायेगा  
गेहूं  भी चाहिए ,चाहिए गुलाब भी 
कुछ प्रश्न उलझे से उनके जवाब भी 
दिल और दिमाग दोनों के मतभेद से परे 
जीवंत हो सके कुछ ऐसे ख्वाब भी 

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