गेहूँ और गुलाब दोनों ही
प्यारी है
गेहूँ के लिए जंग अभी
लाचारी है
हैं दोनों ही महत्वपूर्ण
जीवन के लिए
तब भी भूख सुंदरता पर भारी है
युद्ध जीत और हार के लिए
होता है
और मिले अधिकार के लिए होता
है
परिवर्तन का मार्ग मात्र
क्रान्ति में है
बीज़ शोर की छिपी घोर शान्ति
में है
उसी मौन क्रान्ति का मैं
सिपाही हूँ
नूतन इतिहास रचे वैसी मैं
स्याही हूँ
तपिश पेट की ह्रदय को जब
जला रही हो
और चोरों की फौज़ देश को चला
रही हो
ऐसे में जो खून किसी का न
खौले
आवाज़ करे न कोई ,न कोई मुख
खोले
फटेगी ज्वालामुखी फिर एक
दिन जरूर
टूटेगा सताधारी का लंबा
गुरूर
इन्कलाब का वही जवालामुखी
सुसुप्त हूँ
चाणक्य को है जिसकी तलाश वो
चंद्रगुप्त हूँ
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