निकला था इस सुबह भी ज़ज्बा था ज़ोश  था 
मालूम हुआ की मैं तो खानाबदोश  था 
बस भाग रहा था मैं कोई तलाश में 
उलझा हुआ था ऐसे किसी प्रयास में 
सोंच रहा मैं था कोई तो लक्ष्य हो 
जीवन का मानचित्र कभी तो प्रत्यक्ष हो 
और सामने आजाये कोई रूपरेखा ढोस 
मिलजाए आनंद का ऐसा कोई शब्दकोष 
की जिसके सहारे वर्तमान लिखूं मैं 
भूत - भविष्य से पृथक पहचान लिखूं मैं 
लिखूं की पदचिन्हों पे नमंजूर चलना है 
उसी रचयिता के सांचे में ढलना है   
अब उससे कम कोई बाकी नहीं इच्छा 
जीवन ही प्रार्थना मेरी बस उसकी प्रतीक्षा .....
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