31 October, 2009

एक बार मेरे मनमीत मेरे ये गीत को देना स्वर .........



एक बार मेरे मनमीत

मेरे ये गीत को देना स्वर

जो शब्द मेरे हैं

ह्रदय नाद हैं शब्द ये बड़े प्रखर

थी तरंग जो ह्रदय पटल पर

फुट रही है आज

भाव पवित्र जो छिपे कहीं थे

दो उनको आवाज़

पाकर तेरे सानिध्य

मेरे ये गीत अमर हो जायेंगे

खोने को मेरा क्या है

तुम को खो कर जो पायेंगे .....................


प्यार जब दिखावे में हो जाता है प्रविर्तित ......................


प्यार जब दिखावे में
हो जाता है प्रविर्तित

मेरा अनुभव ये कहता है

की रिश्ते टूट सकते हैं

जब होने लगे बौछार

तोहफे का अचानक तो

मन के किसी कोने में

जानो पल रहा संदेह

की क्यूँ न कुछ करे ऐसा

की आकर्षण दिखायी दे

बिना कारण ही आए

लोग और मुझको बधाई दें

मुझको ये अनुभव हो

की महत्व पूर्ण मैं भी हूँ

पर ये सब क्यूँ , मुझको

समझ आता नहीं इश्वर

जब प्यार पावन है

तो फिर क्यूँ छल का ये चादर

अचानक बदलना क्यूँ

सहजता को तिलांजलि

मेरे अंदर सवाल अनेक

मची है खलबली

शब्द को बदलते देखा

और हाव भाव भी बदला

सब कुछ बदल गया

प्यार हो गया छु मंतर

उसी प्यार को ढूंढे है

ये पागल ह्रदय अंदर ........................


कोई जो ख़ास है अपना तमाचा मार जाता है






कोई जो ख़ास है अपना


तमाचा मार जाता है


येही वो पल जिसमे


इंसान हिम्मत हार जाता है


मुझे ऐसे तमाचों ने


झकझोरा निरंतर है


मेरे भी तमाचे होते पर


उसमे मूल अन्तर है


मैं हिंसक नही होता


इश्वर की दया मुझ पर


पर जब भी ऐसा होता है


मैं भावुक हो जाता हूँ


कलम ख़ुद चलने लगती है


मैं कविता सुनाता हूँ


हर एक रचना मेरी है


उन्ही तमाचों का ही फल


कभी ये मौन का संकेत


कभी अंदर का कोलाहल


कुछ भी हो मगर मैं हूँ


तमाचों का आभारी


बल जो इनमे है शायद


मेरी रचना बनाती है


मेरे निश्छल ह्रदय पे

छाप अपनी छोड़ जाती है ......................

25 October, 2009

स्लम डोग


जो भूख जो लाचारी


को तुम दिखा रहे हो


जो गन्दी बस्ती को तुम


भारत बता रहे हो


ये दंभ है तुम्हारा


की श्रेष्ठ तुम हो सबसे


और है ये अहंकार की


अलग हो इस जग से


तो सुनो बात मेरी


की जाग रहा भारत


नंगापन तुम्हारा


तुम्हारी ये शरारत


क्या लगता है की कब तक


करोगे तुम मनमानी


इतहास तुम बनोगे


इस पल की हम कहानी ................





रास्ता हो कोई मंजिल को हम पायेंगे ................

दृष्टी हो , हो लगन
चल सके उस राह पर
होकर हम पूर्ण मगन
जिस राह पे चला न हो कोई
हो विस्वास हो साहस की
रास्ता हो कोई मंजिल को हम पायेंगे
जीत का हम जश्न शिखर पे मनाएंगे

16 October, 2009

दीप जलना है.........

क्यूँ दीप जलाते हो बाहर तो रौशनी है

जो अन्धकार अंदर उनको भी हटाना है

उस कालकोठरी में भी एक दीप जलना है

जहाँ रौशनी वर्जित है और घोर अँधेरा है

एक दीप जो जल जाए मन के उस कोने में

रात के प्रसव में छीपा सवेरा है ......................

Apna time aayega