क्यूँ दीप जलाते हो बाहर तो रौशनी है
जो अन्धकार अंदर उनको भी हटाना है
उस कालकोठरी में भी एक दीप जलना है
जहाँ रौशनी वर्जित है और घोर अँधेरा है
एक दीप जो जल जाए मन के उस कोने में
रात के प्रसव में छीपा सवेरा है ......................
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
-
जब गिरती है कोई गगन चुम्बी इमारत तब साथ गिरते हैं आस पास के मकान भी और धुल चाटती है ऐसे में ईमानदारी की झोपड़ी इसे सामूहिक निषेध कहते हैं इसी...
-
जीवन एक संघर्ष है मैंने सुना है अनेको के मुख से और इस दौड़ में इंसान दूर हो जाता है सुख से शेष रह जाता है तनाव और अस...
-
जब भी अकेलापन आपको सताएगा परिवार ही उस समय पे काम आएगा रह जायेंगी उपलब्धियाँ दीवार पर टंगी जब मायाजाल आपको ठेंगा दिखायेगा...
No comments:
Post a Comment