16 October, 2009

दीप जलना है.........

क्यूँ दीप जलाते हो बाहर तो रौशनी है

जो अन्धकार अंदर उनको भी हटाना है

उस कालकोठरी में भी एक दीप जलना है

जहाँ रौशनी वर्जित है और घोर अँधेरा है

एक दीप जो जल जाए मन के उस कोने में

रात के प्रसव में छीपा सवेरा है ......................

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