सच क्या है , वो जो दिन रात दिखा रहे हो
या फिर वो जो चतुराई से छीपा रहे हो
अब तो आँख न देखती है , न सुनता कान है
जुबान पे चुप्पी है , अंतर्मन परेशान है
मन के अंदर भी होता है विस्फोट
और संवेदनाये घायल हो जाती हैं
अश्रुधारा निकल पड़ती हैं फायर ब्रिगेड की तरह
मारा जाता है विश्वास इस गतिविधि में रोज़
शायद यही है तुम्हारी समसामयिक पत्रकारिता की ख़ोज
कभी पक्ष और विपक्ष कभी
तील का ताड़ बनाते रहिये
बता के चोर, हर इंसान के दाढ़ी में
चुपके से तिनका कोई, युहीं घुसाते रहिये।