10 May, 2018

अंतर्मन को सुन सकूँ वैसा कान न मिला





















लिखने को शेष क्या रहा, न शब्द हैं न भाव
ये व्यवस्था की दोष थी, या विद्या का अभाव
शिक्षित तो हो गए पर ज्ञान न मिला
ID कार्ड तो मिली पहचान न मिला
दुनिया को देखने के लिए  नेत्र  तो मिली
अंतर्मन को सुन सकूँ वैसा कान न मिला






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