21 July, 2018

खुले आँखों से मैं ख्वाब नयी बुनता हूँ


मैंने देखें हैं बदलाव के इतने मंज़र
कभी तो फूल मिले, कभी पीठ पर खंज़र
कभी मैं रेंगता, चलता तो कभी दौड़ लेता
जिधर जाता न कोई, हर हमेशा वैसी मोड़ लेता
मेरी आदत है रस्ते कठिन मैं चुनता हूँ
खुले आँखों से मैं ख्वाब नयी बुनता हूँ




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