07 July, 2009

जब साथ हो कल्पवृक्ष तो क्यूँ चाह बीज की ...........


मुझे दीखता है गुरु प्रकृति के हर एक रूप में

साथ उसका मिला मुझे हर छाँव धुप में

मैं कब कहाँ अलग था मैं कब था अकेला

गुरु तुम थे तो मैं सोना बना ,था तो एक ढेला

मेरा है क्या जो मुझको हो थोड़ा भी घमंड

विस्वास मेरा तुझपे है अडिग और अखंड

तुम हो तो फिर कमी कहाँ है किसी चीज की

जब साथ हो कल्पवृक्ष तो क्यूँ चाह बीज की ...........

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