एक बार मुस्कुरादो मेरे रचियता 
और कर दो शंखनाद की एक युद्घ होना है 
इस बार विचारों की जो सेना उग्र है 
उन विचारों को अब शुद्ध होना है 
एक बन रही सुरंग तेरह इंच की यहाँ 
उम्मीद है जो पुर्णतः बदलदे ये जहाँ 
ये नित नए झगड़े पर लगना है पूर्ण विराम 
गूंज विचारों की को दंडवत प्रणाम 
मन ने किया अबतक है मनमानी निरंतर 
होने लगा हावी है उन पे मेरा हृदय प्रखर 
विचारों के केन्द्र को हृदय पर होना स्थापित 
रचयिता बजा दो बिगुल होगी ह्रदय की जीत 
जय हो का गूँज मुझको अब देता सुनाई है 
इस जीत पर मेरे हृदय तुमको बधाई है 
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