23 July, 2009

अर्जुन हूँ मैं और मैं ही हूँ वो पार्थसारथी ......


जिन्दगी की पाठशाला में

मैं हूँ विद्यार्थी

अर्जुन हूँ मैं और मैं

ही हूँ वो पार्थसारथी

हर मन की दुविधा मेरी है

और हल भी पास है

फिर भी मन मेरे तूँ

क्यूँ बदहवास है

लड़ाईयां रही है जारी

और लड़ते रहे हैं हम

होता जो युद्घ मस्तिष्क में

देखा उसका भी चरम

युद्घ है कहाँ ये तो खेल अंहकार का

मैं तो हूँ पुजारी उसी निर्विचार का

जो हार और जीत से परे है प्रबल है

ये वो विचार है जो कीचड़ में कमल है ..............







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