डर के आगे जीत है
पर मरने के डर से हर कोई भयभीत है
जैसे जन्म एक सच है , मौत भी यथार्थ है
आज रणभूमि में फिर दिग्भ्रमित पार्थ है
मुझे मरना है एक बार
मैं रोज़ रोज़ के मौत से घबराता हूँ
जिधर भी आँखें जाती हैं
मौत का नंगा नाच दिखाती है
मुझे दे दो आजादी
कर दो मुक्त बंधन से
मेरे मलिन ललाट पर
तिलक दो चंदन से
मैं मौत का पुजारी नही
नाही मैं जीवन का व्यापारी हूँ
मैं एक सम्मान जनक मौत का अधिकारी हूँ
मेरा मरना मेरे अभिव्यक्ति के लिए जरूरी है
अभी भी मेरी जीवन गाथा अधूरी है
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