09 July, 2009

मुझे मरना है एक बार

डर के आगे जीत है

पर मरने के डर से हर कोई भयभीत है

जैसे जन्म एक सच है , मौत भी यथार्थ है

आज रणभूमि में फिर दिग्भ्रमित पार्थ है

मुझे मरना है एक बार

मैं रोज़ रोज़ के मौत से घबराता हूँ

जिधर भी आँखें जाती हैं

मौत का नंगा नाच दिखाती है

मुझे दे दो आजादी

कर दो मुक्त बंधन से

मेरे मलिन ललाट पर

तिलक दो चंदन से

मैं मौत का पुजारी नही

नाही मैं जीवन का व्यापारी हूँ

मैं एक सम्मान जनक मौत का अधिकारी हूँ

मेरा मरना मेरे अभिव्यक्ति के लिए जरूरी है

अभी भी मेरी जीवन गाथा अधूरी है

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