तांडव न हो कोई न अब कोई रास हो
हर पल तुम्हारे सत्ता का सहज एहसास हो
कोई गीत बंधे न अब शब्दों के बंधन में
हर जीव थिरके बस वही एक अंतर्नाद हो
बन जाए आँखें हीं संवाद के सेतु
अब भाषा पे क्यूँ कोई विवाद हो
मेरा है क्या जो मुझको अंहकार दे दिया
तुम श्रेष्ठ हो अलग हो ये विचार दे दिया
फिर जो पहल हुआ वो अस्तित्व के लिए
प्रभु गेंद बना कर इस तरह न खेलिए
मुझको वो समझ दीजिये मेरे श्रिजंहार
मैं अभीव्यक्ति आपका हूँ और आप चित्रकार
मैं जाऊं गर भटक तो रास्ता दिखाईये
मेरा बना रहा सदा आपसे व्यभ्हार..............
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