03 July, 2013

मौन की गूँज







मैं वही हूँ कागजों  में है समाया गुण मेरा
प्रमाण पत्रों से परे कुछ और भी है धुन मेरा
ये वो टुकड़े कागज़ के अर्जित किया खो के सुकून
जीवन के रेस  में युहीं दौड़ रहा अन्धाधुन
पाया है क्या ,पाना है क्या, दौड़ते जाना है क्या
कोई नहीं जो इन सवालो का सटीक सुझाव दे
अंसंख्य है बैठे यहाँ की फिर नया कोई  घाव दें
जो जख्म है जो घाव है जो  नित नए  तनाव है
 उनके सहारे मौन में भी गूँज ढूँढता हूँ मैं
कोई तो होगी प्रभात  इस अँधेरी रात की
विश्वास मन  में लिए प्रकाशपुंज ढूँढता हूँ मैं 

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