मेरे अंदर का डर
मुझे मजबूत कर जाता है
जब मैं विचलित नहीं होता
डर विलीन हो जाता है
लेकिन उस अन्तराल में
मन के साथ मेरा युद्घ चलता है
हर निराशा के विचार पर
आशावादी शब्दों का प्रहार चलता है
डर के बाद होता जीत है
और हारना अपनी कमजोरियों से
कहाँ रणभूमि की रीत है
मन के हारे हार है
मन के हावी होने का बस येही आधार है
जीतना अगर है तो मन का विनाश जरूरी है
उड़ना हो बंधन तोड़ तो खुला आकाश जरूरी है
तो मन के कलाबाजी पर नियंत्रण
मन का पुर्णतः आत्म समर्पण
जीत के संभावनाओं को बुलंद करता है
अब डर के बाद जीत से कौन डरता है
हर कदम जब अभिव्यक्ति हो जायेगी
हर युद्घ जब कुछ नए परिवर्तन लाएगी
तब जीत के नए आयाम सामने आयेंगे
डर विलीन होगा और हम प्रेम से जीत को गले लगायेंगे ...............
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