22 June, 2009

डर के बाद होता जीत है


मेरे अंदर का डर

मुझे मजबूत कर जाता है

जब मैं विचलित नहीं होता
डर विलीन हो जाता है

लेकिन उस अन्तराल में

मन के साथ मेरा युद्घ चलता है

हर निराशा के विचार पर

आशावादी शब्दों का प्रहार चलता है

डर के बाद होता जीत है

और हारना अपनी कमजोरियों से

कहाँ रणभूमि की रीत है

मन के हारे हार है

मन के हावी होने का बस येही आधार है

जीतना अगर है तो मन का विनाश जरूरी है

उड़ना हो बंधन तोड़ तो खुला आकाश जरूरी है

तो मन के कलाबाजी पर नियंत्रण

मन का पुर्णतः आत्म समर्पण

जीत के संभावनाओं को बुलंद करता है

अब डर के बाद जीत से कौन डरता है

हर कदम जब अभिव्यक्ति हो जायेगी

हर युद्घ जब कुछ नए परिवर्तन लाएगी

तब जीत के नए आयाम सामने आयेंगे

डर विलीन होगा और हम प्रेम से जीत को गले लगायेंगे ...............


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