शब्दों के जंगल में
परिभाषाओं की बाढ़ है
भावनाओं का मोल क्या
यहाँ अनुभव लाचार है
होड़ है लगी आगे मैं निकल जाऊँ
कोई ऐसी नयी मैं चाल चल जाऊँ
लोगों को हराकर करूँ मैं जीत का एलान
अपनी बना सकूँ भीड़ से अलग पहचान
इसी क्रम में भूला मैं इंसान था कभी
अपनी ही दुनिया में मैं आज अजनबी ........
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