15 June, 2009

मैं जीवन की पहेली को सुलझाने की चेष्टा नहीं रखता .............


मेरा क्या है खोने को
कौन है अपना होने को
था अकेला पहले भी
और आज भी अकेला हूँ
मैं इस राह का पथिक पहला हूँ
पदचिन्ह कहाँ जिसे मैं करूँ अनुसरण
चलता हूँ जैसा कहता मेरा अन्तः करण
मैं जीवन की पहेली को सुलझाने की चेष्टा नहीं रखता
मैं तो खुश हूँ अपनी यात्रा के अनुभवों से
और बताना चाहता बस इतना
की मैं मुर्ख और दुनिया सयाना है
मैं भेड़ की भीड़ से अलग हूँ
मुझे अपना रास्ता स्वयं बनाना है ...............

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