मेरी एक अभिलाषा है 
और छोटी सी है आशा एक 
की वज्र बने मेरे मन को मार कर 
देना चाहता हूँ मैं दान में अपना विचलित मन 
जैसे दधीची ने दी थी अपनी हड्डियाँ 
ताकि बन सके वज्र और विनाश की बेदी पर 
श्रीजन के बीज प्रतिस्फूटित हों 
और कालांतर तक मस्तिष्क पर छोड़ दूँ छाप 
लगादुं समय के उन्नत ललाट पर शीतल चंदन 
दधीची स्वीकार करो मेरा मौन अभिनन्दन ........................
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