10 June, 2009

दधीची स्वीकार करो मेरा मौन अभिनन्दन


मेरी एक अभिलाषा है

और छोटी सी है आशा एक

की वज्र बने मेरे मन को मार कर

देना चाहता हूँ मैं दान में अपना विचलित मन

जैसे दधीची ने दी थी अपनी हड्डियाँ

ताकि बन सके वज्र और विनाश की बेदी पर

श्रीजन के बीज प्रतिस्फूटित हों

और कालांतर तक मस्तिष्क पर छोड़ दूँ छाप

लगादुं समय के उन्नत ललाट पर शीतल चंदन

दधीची स्वीकार करो मेरा मौन अभिनन्दन ........................

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