10 June, 2009

शिव जी जस्ट वान्ना से हेल्लो


शिव है या फिर है शव

मौन या सुखद कलरव

उस चैतन्य का मैं पुजारी हूँ

मिला जो जीवन आभारी हूँ

की आभास उसका मुझे कण कण में है

उसकी छाप मेरे हर वचन में है

मैं भी पीना चाहता हूँ विष सागर मंथन का ताकि

अमृत के निकलने की सम्भावना बनी रहे

और सर के अंहकार पर चंद्रमा की शीतलता

चाहता हूँ मैं भी तुम्हारा सानिध्य

की मांगू क्या अब सिर्फ़ तुम चाहिए

और उससे कम कुछ नही

क्यूँकी छोड़ दी है मैंने बीजनेस भक्ति

टूट गया है मोह और ज्ञात हो गया है साध्य ................


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