24 June, 2009

पन्गुइन के सहर में मैं एक मोर हूँ ............


पन्गुइन के सहर में मैं एक मोर हूँ

घनघोर अंधेरे को जो तोड़ दे वो प्रभात वो भोर हूँ

मेरी हर एक पहल अभिव्यक्ति है उस सर्वशक्तिमान की

मुझे सच पर बिश्वास है , जीता जीवन मैं अनजान की

बन नहीं मैं सकता मैं पन्गुइन खुश हूँ मोर होके

इनके अंधे दौड़ से बहार , जो रोके न रुके

मेरा तो उद्देश्य है जीवन को खुल के जीना

श्याम श्वेत जीना गंवारा नहीं

मैं तो आनंद का पर्याय हूँ ,जीत हार प्यारा नहीं

उसी आनंद में मैं निरंतर आत्मविभोर हूँ

पन्गुइन के सहर में मैं अकेला जीवित मोर हूँ .............

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