01 June, 2009

जब रास्ते मंजिल हों तो राही को क्या डरना


जब रास्ते मंजिल हों तो राही को क्या डरना

जिन्दगी पाठशाला किताबों में क्या पढ़ना

क्या शोध , क्या पढ़ाई रोटी के लिए करना

जो जन्मा इस धरा पर एक दिन है उसे मरना

फिर काहे का ये हल्ला और क्यूँ है ये हंगामा

जिन्दगी के रंगमंच पर चल रहा जो ड्रामा

तुम पात्र में अपने इस तरह खो गए हो

अपने ही अंतर्मन से अलग हो गए हो

झख्झोर के तुमको बस इतना है बताना

इस मंच के परे भी कोई और है ठिकाना

जहाँ चित्र भी तुम्ही हो और चित्रकार भी हो तुम ही

जहाँ प्रेमी भी तुम्ही हो और प्यार भी हो तुम ही

तुम्हारे इस यात्रा का हमसफ़र बस वही है

उसके हांथों में हाँथ तो फिर सब सही है .................





1 comment:

  1. tumahre is yatra ka hamsafar bas wahi hai ,uske haathon me haath to phir sab sahi hai .bahut umda .badhaai ho .

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