27 December, 2014

नए बीज़ बो रहा हूँ ह्रदय के क्यारी में
















कुछ यादों को समेटे
कुछ सपनो को संजोये
मैंने असंख्य बीज़
अपने ह्रदय में बोये
हर शख़्स जो मिला  मुझे
जीवन के पगडण्डी पर
कुछ नया मुझको युहीं सीखा गया है
जब द्वार बंद होते रस्ते दिखा गया है
अब वक़्त फिर से आया नए वर्ष के बहाने
कुछ मित्र फिर बनेंगे आयेंगे कुछ सीखाने
मैं बाहें खोल उनके  स्वागत की तैयारी में
नए बीज़ बो रहा हूँ ह्रदय के क्यारी  में। 







19 August, 2014

रिश्ते


 
 
 
 
 
 
 

मतभेद हो तो हो, मनभेद हो न पाए

कोई भी ग़लतफ़हमी इतना द्वेष न जगाये

की बात छोटी भी हो, तो तिल का ताड़ कर दो

नाजुक जो होते रिश्ते उन पर प्रहार कर दो

धागा जो प्रेम का है उसे बार बार तोड़ो

विश्वास के गर्दन को इस तरह न मरोड़ो

की अंतिम कड़ी जुड़ने की इस कदर टूट जाए

जुड़ना तो बहुत दूर गाँठ भी न पड़ने पाए ..........

30 July, 2014

गुरु के प्रतीक्षा में अकिंचन मैं प्रार्थी



















शिक्षा मिली पर विद्या से दूर रह गए
शेष कागज़ी प्रमाणों के गुरूर रह गए
दीवारों पर टंगी उपलब्धियां रही
हम मूढ़ थे, मूढ़ हैं और मूढ़ रह गए

आजीविका को जीने का प्रयाय मान के
शिक्षा को ज्ञान का अध्याय मान के
हम बस बढ़ाते रह गए निज अहंकार को
अंकुश न लगा पाये मिथ्या प्रचार को

शिक्षा मिला विद्या से परिचय नहीं हुआ
विजय अनेक हासिल,फिर भी जय नहीं हुआ 
अर्जुन को मिल गए थे जैसे पार्थसारथी
गुरु के प्रतीक्षा में अकिंचन मैं प्रार्थी।









20 July, 2014

कभी कारवां न बना पाया मैं















बस यही बात दिल ये समझाता रहा
धैर्य का पाठ मुझको पढ़ाता  रहा
मंज़िल की परिभाषा बदलती रही
भले हौसला लड़खड़ाता रहा

कदम भी अनायास बढ़ते रहे
कुछ आये करीब कुछ बिछड़ते रहे
कभी कारवां न बना पाया मैं
चाह मेरी थी कोरस में गाता  मगर
चंद पंक्ति अकेले गुनगुना पाया मैं

खेद मुझको नहीं ,पर असंतोष है
इसमें पाता नहीं मैं कोई दोष है
मैं तो पथिक हूँ , धर्म चलना मेरा
नहीं शोभा देता मचलना मेरा
पर गणना जो होगी खोने पाने की
तो खोया अधिक है ,क्या पाया हूँ मैं
चुल्लू भर पानी को खोजने   के लिए
माँ गंगा का तट छोड़ आया हूँ मैं.




11 July, 2014

ह्रदय के भाव कुण्ड में विचारों का ये हवन है















मैं हमेशा ढूंढ़ता सुकून दिल के कोने में
कुछ तो महत्वपूर्ण होता अकेले होने में
साँसों की गति पे अनायास ध्यान जाता है
होता प्रतीत ऐसे जैसे साथ में विधाता है

बाहर की कोलाहल नहीं फिर भेदती अंदर का मौन
इस अवस्था में जैसे ये प्रश्न न हो मैं हूँ कौन
शेष जो रहता है बस साँसों का आवागमन है
ह्रदय के भाव कुण्ड में विचारों का ये हवन है
















09 July, 2014

शिक्षक अनेक गुरु की कमी खलती है




शिक्षा सिमट गयी कागज़ी प्रमाणों में
उपाधि बिक रही खुले यहाँ दुकानो में
शिक्षक अनेक गुरु की कमी खलती है
ये असंतोष मेरे भी मन में पलती है

काश होता कोई जो बात ये बता देता
की जो ये दौड़ है इसका कोई क्या अंत भी है
ये पतझड़ जो जारी है लम्बे अरसे से
बाद इसके क्या कोई सुखद बसंत भी है

गुरु कहाँ है , कहाँ शिष्य , शिक्षा है किधर
जो इंसान बनाए वो परीक्षा है किधर
किधर है ज्ञान जो तमस का नाश करती है
कीचड़ में खिले कमल प्रयास करती है



06 July, 2014

कबीरा



 
अब भी प्रश्न तुम्हारे ऐसे टेढ़े मेढ़े होते हैं
जिसके उत्तर और प्रश्न के बीज़ नए बो देते हैं
मैं मूढ़ हल के चक्कर में डुबकी रोज़ लगता हूँ
फिर तुम कोई प्रश्न दे देते, उत्तर ढूंढ जो लाता हूँ
बिक्रम और बैताल के जैसे क्रम ये चलता रहता है
क्या कबीरा तुभी इसी क्रम को सच्चा जीवन कहता है
मैं भी हूँ बाज़ार में डटा हाँथ में लिए लुआठी
अहंकार फूकन मैं आया बस तू ही मेरा साथी
थोथा ज्ञान नहीं, परिचय मेरा मुझसे करवा दो
संभव हो तो स्वयं की भाँती कबीरा मुझे बना दो ........
 



22 April, 2014

विनिवेश

















दो कदम आगे बढ़ाया
तीन पीछे खींच ली 
झूठ का चश्मा लगाए 
आँखे सच से मीच ली 
मन को भी समझा दिया
शामिल हूँ मैं भी रेस  में
विश्व के बाज़ार में
अपने ही विनिवेश में

लगेंगी बोलियाँ मेरे
कागज़ी उपलब्धि पर
पोषित हो अहंकार
बैठेगा व्यास गद्दी पर
और फिर वही उपदेश
एवं  योजना भविष्य की
और समझाना की ये
जरूरत है इस परिदृश्य की
इस तरह  कहीं कोई
स्वर मौन फिर है हो गया
मुखोटों के
आडम्बर में
असली चेहरा खो गया।















10 February, 2014

हर इंसान कि 'महाभारत' निजी लड़ाई है















रणभूमि है योद्धा भी हैं और शंखनाद भी, 
कहीं हर्ष से भरा ह्रदय कहीं विषाद भी ,
विचारों के कौरव मन में उत्पात मचाते ,
कहाँ है वो पांडव  जो अंकुश लगा जाते। 

न कृष्ण कि लीला है, न गीता का ज्ञान है ,
अंतर्मन का कौतुहल युद्ध का प्रमाण है ,
न 'गूगल' के पास हल है ,न  'आरटीआई' है,
हर इंसान कि 'महाभारत' निजी लड़ाई है 






  













04 February, 2014

वसंतपंचमी














किताबों  से परे उस ज्ञान का मैं भी तो खोजी हूँ
जो अंतर्मन के ईश से परिचय कराती है ,
बस विद्या यही एक मात्र ,बाकी थोथी शिक्षा है 
जो इंसान को सच्चा इंसान बनाती है। 

उसी विद्या कि देवी को  मेरा है दंडवत, 
जो परिचय कराये उससे जो है सत्य शाश्वत। 

आदर से जोड़े हाँथ तुम्हारे द्वार नतमस्तक 
माँ शारदा ये भक्त , है दे रहा दस्तक  
तुम्हारी कृपा जो हो , फिर जीवन में क्या कमी, 
मेरे लिए हर दिन ही माँ है वसंत पंचमी। 






28 January, 2014

मुखौटा















अब क्या कहूं
न शब्द हैं
न भाव है
चेहरे के पीछे
जो एक छीपा चेहरा है और
उसके ललाट पर तो बस तनाव है।

तुम्हारे मापदंड से
सफल हूँ मैं इस दौड़ में ,
था भूल गया खुद को मैं
प्रतियोगिता कि होड़ में

मैं कौन हूँ ,क्यूँ हूँ यहाँ
क्या योजना कोई लक्ष्य है ,
ग़र  दे सको तो दो मुझे
उत्तर यदि प्रत्यक्ष है।














 

Apna time aayega