05 January, 2010

मौन के उस गूँज का खोजी क्रन्तिकारी हूँ


मन के किसी कोने में

एहसास अनोखा है

दुनिया में जो दिखता है

भ्रम है वो धोखा है

सच्चाई कहाँ दिखती

और होती कहाँ आज़ादी

आवाज़ जो मतलब की

उसको कहाँ हवा दी

मन के किसी कोने में

दफ़न वजूद मेरा

एक रौशनी जो आए

मिट जाए ये अँधेरा

उस रौशनी का मैं

अकिंचन पुजारी हूँ

मौन के उस गूँज का

खोजी क्रन्तिकारी हूँ ..............................










1 comment:

  1. जो हमेशा है वह दिखता नही
    ,
    जो है आता जाता वह केवल हमारे दृष्टिपटल पर आता।
    मिल जाए उपाय कोई उस शास्वत को देखने का ,
    तो मुझे भी साथ ले लेना रे मेरे भाई ।

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