11 January, 2010

मैंने हकीकत में ख्वाब देखा है


मैंने हकीकत में ख्वाब देखा है

कुछ सवालों का जवाब देखा है

यूँ अचानक ही कुछ हुआ जैसे

तपती रेत पे एक तालाब देखा है

प्यास मेरी मुझे चलाती है

तालाब कहीं रेत में खो जाती है

फिर भी मैं हारता नहीं , चलता

प्यास अब त्रास बन के था क्षलता

मृगतृष्णा थी मैं अचेतन था

घबराया हुआ मेरा मन था

ऐसा लगता था मैं मर जाऊँगा

उसी समय खुली आँखें मैं जागा

लगा मन को की मैं तो जिन्दा हूँ

प्यास गर हलक तक आजाये तो

बस एक तड़पता हुआ परिंदा हूँ

मौत के शहर के बीचोबीच

मैं एक मात्र जीवित वाशिंदा हूँ

1 comment: