तुमको क्या मिल गया की तुम बुद्ध हो गए
क्या पा लिया था तुमने जो तुम शुद्ध हो गए
मुझको तलाश है उसी कल्पवृक्ष का
जिसकी छत्र छाया में तुम प्रबुद्ध हो गए
मैं ढूँढ रहा था उसी तरंग को
अनंत विधमान जो उसी आनंद को
चरणों का समर्पित अहंकार मेरा है
मेरे मलिन ह्रदय का तूं सवेरा है .................
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