07 January, 2010

हर खेल उसी का रचा हुआ उसकी ही है करतूत .............


बीज के अस्तित्व के विलीन

होने से ही अंकुर आता है

पर क्या यह बात सोंच

बीज पछताता है

नहीं

पर हम घबराते हैं

और बेचैन हो जाते हैं

विनाश में सृजन के

छुपे सत्य की प्रसव वेदना

कहाँ समझ पाते हैं

और गर्भपात हो जाता है

जन्म से पहले ही

सुनहरा पल खो जाता है

आहट उस वर्तमान की

को कुचलो मत होने दो प्रस्तुत

हर खेल उसी का रचा हुआ उसकी ही है करतूत .............












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