आँखों के समँदर में , आंसू की ज्वारभाटा
बोया बबूल था, जो उपजा है बन के काँटा
ये वक़्त का तकाज़ा ,रेगिस्तान का मंज़र है
गर्मी के तपिश से झुलसता हुआ सहर है
पेड़ों को काटा हमने , नदियों में जहर घोला
बिमारी नयी बनाई , अस्पताल हमने खोला
जंगल ज़मीन जल और वायु भी विषैला है
बस याद रहे हाँथ तेरे कौन सा थैला है
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