मुझे मंज़िल से प्यारा राह है
जिसका मैं राही हूँ
उन्मुक्त भाव जो बिखेरे कोरे कागज़ पर
मैं विधाता की वही स्वर्णिम सी स्याही हूँ
मौन हूँ मैं , शोर हूँ ह्रदय का क्रंदन हूँ
कभी जलता हुआ मशाल , कभी शीतल सा चन्दन हूँ
मैं वही हूँ ,जो हो तुम और वो भी वही है
बात गहरी है मगर हलके में कही है
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