भय है, है दुःख,जिंदगी लाचार है वहाँ 
कोशिश नहीं कोई की बदलाव कैसे हो 
चिलचिलाती धुप में फिर छाँव कैसे हो 
एक विचार काफी है बदलाव के लिए 
बीज़ लगाते रहो नित छाँव के लिए 
अन्धकार घोर हो निराश न होना 
दीपक जलाते रहना  संसार के लिए 
हर एक जो प्रश्न  है 
उसका हल भी है मौजूद 
बस  इतनी सी है शर्त 
 दीपक बनो तुम खुद 
कोई कृष्ण सारथी बन ,रथ ले के आएंगे 
शंख पांचजन्य वो  पुनः बजायेंगे
अपनी समस्या को आउटसोर्स न करना 
अर्जुन की भाँती रणभूमि में योद्धा बन लड़ना  

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