05 February, 2009

जो रस्ते पे चलके कदम न थके थे .................


मुझे मेरी मंजिल नज़र आ रही है

जो रस्ते पे चलके कदम न थके थे

वो रस्ते ही मंजिल को बतला रही है

तू राही रहेगा जो चलते निरंतर

तो मंजिल तुम्हारी बदलती रहेगी

हर रस्ता जो तेरे सफर में है साथी

वो किसमत पे अपने तो इठला रही है



No comments:

Post a Comment

Engineering enlightenment