अर्जुन देता चाय यहाँ
प्रह्लाद पिलाता पानी 
बर्तन ध्रुव है मांज रहा 
ये है भारत की कहानी 
चाय नही है शोषण का 
ये खेल अजब चलता है 
हर चौराहे चौक पे 
ये दृश्य मुझे खलता है 
अपराधी हम भी तो हैं 
जो देख मूक रहते हैं 
फिर भी देश को अपने तो
हम महान कहते हैं 
नम है आँखे मेरी और मन में है आतंक 
जो ललाट का तिलक था वो बन गया है अब कलंक.
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