22 August, 2009

आहट तुम्हारे आने की प्रभु आज मेरे द्वार ......


आहट तुम्हारे आने की

प्रभु आज मेरे द्वार

पट तो खुला घर का है

बंद मन के हैं किवाड़

तुमको तो पता है की

बिस्वास तुम्हारा

है एक मात्र मेरा

जीने का सहारा

विचलित न करती मुझको

जीवन की रणभूमि

जो पूर्ण से आया हो

उसमे फिर क्या कमी

बस धुल हटाना है प्रभु

मन पे जो पड़ा

भक्ति मेरी निश्छल है

तेरे द्वार मैं खड़ा

बस तेज तिलक लगादो

मेरे ललाट पर

की जाग जाए वो

जो सोया हुआ अंदर

और फिर हो अभिव्यक्त

शक्ति अनंत जो

पता चले ये जग में

हर कण में तुम्ही हो

हर साँस में तुम्ही

हर धड़कन में तुम्ही हो

ये वसुंधरा पे

गगन में तुम्ही हो

तुम्ही हो और कुछ नहीं मौजूद यहाँ पर

देख सकूँ तुमको वो नेत्र दो प्रखर ................



शंकर स्वयं तुम्ही हो हनुमन.............


तुम ज्ञान और गुन के सागर तुम हो आन्जनेय

तुम्हारे आगमन से ही होता है विजय

अतुलित बलधामा तुम ही हो

और तुम हो सुमति के संग

कोटि-कोटि प्रणाम तुम्हे कंचन जिसका रंग

शंकर स्वयं तुम्ही हो हनुमन

तुम्ही हो विद्या वान्

मैं तेरा हूँ मूढ़ भक्त

तेरी कीर्ति से अनजान

सूक्ष्म भी तुम्ही हो और हो सर्वव्यापी

मैं तो हूँ बन कर जैसे कलयुग का अभिशापी

संजीविनी की पहचान तुम्हे

तुम्ही हो तारणहार

मेरे नन्हे हाथों से नमन

प्रभु करो आज स्वीकार ..........


21 August, 2009

फिर कलम मजबूर है कागज़ के जिद के सामने ...........

फिर कलम मजबूर है
कागज़ के जिद के सामने
प्रश्न है की क्यूँ बिताया
लंबा बनवास रामने
क्यूँ राम मर्यादा पुरषोतम
और रावण पापी है
दोनों की राशि है एक
फिर राम क्यूँ प्रतापी है
माँ कुमाता नही होती
फिर कैकेय को क्या कहें
मंथरा दासी है
फिर बिश्वास उसका क्या कहें
राम ले अग्नि परीक्षा
सीता तो निर्दोष है
कौन सी मर्यादा है ये
कैसा शब्दकोष है .............






20 August, 2009

मेरा काम है चंदन को घीस कर नाली में बहाना ..........




एक अकेला मैं ही हूँ


जो मस्त हूँ इस वीराने में


मालिक और नौकर भी मैं हूँ


मौत के कारखाने में


मेरा काम है चंदन को घीस कर नाली में बहाना


और फूल के खुशबू से गंदे कुत्तों को नहाना


आदत मेरी अब स्वभाव है


रोज ये मेरा धंधा है


आते जाते लोग ये कहते


पागल है ये अँधा है


मैं तो बस प्रतिबिम्ब तुम्हारा मुझे देख घबराते हो


तुम भी सब कुछ जानके भी फिर गलती क्यूँ दोहराते हो


नाली सी जीवन है कर ली खुश हो की अंजुली है भर ली


बंद हो गया डब्बे में और बेच दिया चैतन्य


तेरा जीवन है धन्य


मौत के डर से जीना छोड़ा


टट्टू बन घोडों संग दौड़ा


सोंच के ये की भाग भाग गर


भाग्य मैं अपनी बनाऊंगा


इस दौड़ के अंत में मैं तो


भाग्यशाली कहलाऊंगा


होना था आनंद जहाँ पे


वहां पे कुंठा भरी है आज


मैं तो हूँ पर्याय तुम्हारा


तुम बन गए अभिशप्त समाज ............




ह्रदय पर हावी है मस्तिष्क ......

एक उदास मन की पीड़ा
काव्य में जब समाती है
कलम की आवाज से
कागज़ भी चौक जाती है
विद्रोह जारी अंतर्मन का
जीत उसकी चाह है
ह्रदय पर हावी है मस्तिष्क
चेतना गुमराह है
मन की पीड़ा है यथावत
ह्रदय है खंडित पड़ी
मन को मारना यहाँ
टेढी खीर है बड़ी ...........

19 August, 2009

कोई आने वाला है


कोई आने वाला है
खोल दो दरवाजे मन के
और वातायन से हवा आने दो
मलिन मन को रौशनी में नहाने दो
ताकि तिमिर जो अंदर का है वो
होजाए छूमंतर
अन्धकार से लड़ना कहाँ निरंतर
बस उजाले में डुबकी लगाना है
यहाँ आज किसी को आना है
जानते हो जो है मन के परे
उसका विस्तार अनंत है
उसी अनंत के खोज में
आ रहा वो भटकता संत है
आना नहीं बस प्रकट है होना
शर्त है की स्वक्ष हो मन का हर कोना
जैसे शिल्पकार हटता है जो अधिक है पत्थर में
और प्रकट हो जाती है मनोरम काया
वस्तुतः अतिथि है तेरे ही अंतर्मन की निश्चल छाया

18 August, 2009


मेरे मन के फलक पर

कोई कर गया श्रीजन

उस कलाकार की कुची

को ढूंढे मेरा ये मन

वो रचियता है उसकी

अभिव्यक्ति मैं अनमोल

कोरे मन के विस्तृत पटल

पर डाला रंग ह्रदय खोल

आरम्भ जब उत्तम है तो

क्या अंत की चाह

किसी परिधि में बंधता कहाँ

रचना का उत्साह

मेरे अंदर का जो फलक है

और जो है बहार का

जब प्रेम नदी का श्रोत हिमालय

चाह कहाँ गागर का

जो भी बंधन है, है मन की

कहाँ अंत होती है गगन की

उसी गगन में पंख फैलाये

घूमता मै स्वछंद

तू भंवरा मै मकरंद ........



17 August, 2009

मैं बकरा तुम कसाई

मैं बकरा तुम कसाई
फिर इतना प्यार क्यूँ भाई
मौत का माला गले में टाँगे
हरी पतियाँ खाता हूँ
तुम जब प्यार दिखाते हो
तो मैं घबरा सा जाता हूँ
जानता हूँ ये पत्ते तेरे
मौत के पत्र-प्रमाण हैं
और जो पानी पिता मैं हूँ
अटकी मेरी जान है
तू कसाई और मैं बकरा हूँ
नियति मौत है मेरी
मरना भी उतना सच्चा है
जितनी जीवन तेरी
मरकर अमर नाम नही जिसका
मैं वैसा हूँ बकरा
मौत के क्रम में तुझसे मेरा
न कोई झगडा लफड़ा
मेरे मौत के बाद दूसरा बकरा फिर आएगा
पर तू कसाई जीवर भर तो कसाई ही रह जाएगा ..............

श्रीजन की कोई क्या सीमा कहाँ पे होती कोई हद है .

भीड़ में अकेला मैं हरदम होता हूँ
येही वो पल होते हैं जब मैं मौन होता हूँ
कोलाहल जो अंदर की और बहार का जो है शोर
येही वो समय है जिसमे बोता बीज मैं चहु ओर
मैं वो बीज बोता हूँ जो बन जाते बरगद हैं
श्रीजन की कोई क्या सीमा कहाँ पे होती कोई हद है ..........

08 August, 2009

डुगडुगी मदारी बजायेगा .............

डुगडुगी मदारी बजायेगा
बन्दर तो नाच दिखायेगा
और इशारे समझ के वो
लगाता रहेगा गुलाटी
मदारी के हाँथ में लाठी
रंगमंच पर हमभी तो बस
कलाकार के भाँती हैं
वो हाँथ सूत्रधार की है
जो हमसे ये करवाती हैं
पर एक दिन ऐसा आता है
जब अंहकार छु लेती है
तब सूत्रधार समझता है
देता संकेत निरंतर है
जीवन और मौत में तेरे
बस एक साँस का अन्तर है ..................




07 August, 2009

मैं जीन्दगी का साथ निभाता चला गया


मैं जीन्दगी का साथ निभाता चला गया

मंजिल तो दूर थी मगर साथी अनेक थे

साथ उनके मैं हमेशा गाता चला गया

जिनको पसंद था रुकना पड़ाव पर

उनसे मैं अपना पीछा छुडाता चला गया

कुछ ऐसे भी मिले जो अपमान करते थे

थोड़ा बढ़ो आगे तो परेशान करते थे

मेरे ही रस्ते में बोते थे कांटे वो

आज उन्ही राहों पर वो डगमगा के चलते हैं

पथिक का धर्म है चलना निरंतर ही

मैं धर्म को अपने निभाता चला गया

संकेत रचयिता का तुम को भी मिलता है

और मौन के हृदय में संगीत पलता है

मैं अपनी कदम उससे मिलाता चला गया

मैं जिन्दगी का साथ निभाता चला गया.....

05 August, 2009

आसमान छूना है बन के आन्जेनेय............




आसमान छूना है


बन के आन्जेनेय


और करना है स्वछंद विचरण


कब होगा जामवंत तुम्हारा आगमन


मुझे रावन की लंका भी जलानी है


और संजीवनी भी लानी है


पर अंदर की लंका अयोध्या कैसे बन पाएगी


और कैसे मृत चैतन्य संजीवनी के संपर्क में हो जायेगी जीवंत


मुझे तुम जैसा गुरु चाहिए जामवंत........








04 August, 2009

तुम हो ये महत्वपूर्ण है ..............


तुम हो ये महत्वपूर्ण है

और लगता है रहने से तुम्हारे

समस्याएं विलीन हो जाती है

जो धुल पड़ गए हैं एहसासों पर

वो रंगीन हो जाती है

सारी यादें ताज़ा तरीन हो जाती है

और फिर मन करता है फैला कर

बाहों को करूँ तुम्हारा अभिनन्दन

तुम्हारे इंतज़ार में मैं खड़ा अकिंचन .....

01 August, 2009

मनोरंजन तुम्हारा हो जरूरी तो नहीं है ................

मनोरंजन तुम्हारा हो
जरूरी तो नहीं है
होना वो जरूरी है
जो सचमुच में सही है
फिर अच्छा लगे तुमको या लगे बुरा
काम जो अधूरे हैं करना उसे पूरा
तुम फिर कभी आना
राजनीति से खेद है
बस येही कारण है
जो मेरा मतभेद है .................


Apna time aayega