19 August, 2009

कोई आने वाला है


कोई आने वाला है
खोल दो दरवाजे मन के
और वातायन से हवा आने दो
मलिन मन को रौशनी में नहाने दो
ताकि तिमिर जो अंदर का है वो
होजाए छूमंतर
अन्धकार से लड़ना कहाँ निरंतर
बस उजाले में डुबकी लगाना है
यहाँ आज किसी को आना है
जानते हो जो है मन के परे
उसका विस्तार अनंत है
उसी अनंत के खोज में
आ रहा वो भटकता संत है
आना नहीं बस प्रकट है होना
शर्त है की स्वक्ष हो मन का हर कोना
जैसे शिल्पकार हटता है जो अधिक है पत्थर में
और प्रकट हो जाती है मनोरम काया
वस्तुतः अतिथि है तेरे ही अंतर्मन की निश्चल छाया

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