कोई आने वाला है
खोल दो दरवाजे मन के
और वातायन से हवा आने दो
मलिन मन को रौशनी में नहाने दो
ताकि तिमिर जो अंदर का है वो
होजाए छूमंतर
अन्धकार से लड़ना कहाँ निरंतर
बस उजाले में डुबकी लगाना है
खोल दो दरवाजे मन के
और वातायन से हवा आने दो
मलिन मन को रौशनी में नहाने दो
ताकि तिमिर जो अंदर का है वो
होजाए छूमंतर
अन्धकार से लड़ना कहाँ निरंतर
बस उजाले में डुबकी लगाना है
यहाँ आज किसी को आना है 
जानते हो जो है मन के परे 
उसका विस्तार अनंत है 
उसी अनंत के खोज में 
आ रहा वो भटकता संत है 
आना नहीं बस प्रकट है होना 
शर्त है की स्वक्ष हो मन का हर कोना 
जैसे शिल्पकार हटता है जो अधिक है पत्थर में 
और प्रकट हो जाती है मनोरम काया  
वस्तुतः अतिथि है तेरे ही अंतर्मन  की निश्चल छाया
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