तुम ज्ञान और गुन के सागर तुम हो आन्जनेय 
तुम्हारे आगमन से ही होता है विजय 
अतुलित बलधामा तुम ही हो 
और तुम हो सुमति के संग 
कोटि-कोटि प्रणाम तुम्हे कंचन जिसका रंग 
शंकर स्वयं तुम्ही हो हनुमन
तुम्ही हो विद्या वान्
मैं तेरा हूँ मूढ़ भक्त 
तेरी कीर्ति से अनजान 
सूक्ष्म भी तुम्ही हो और हो सर्वव्यापी
मैं तो हूँ बन कर जैसे कलयुग का अभिशापी 
संजीविनी की पहचान तुम्हे 
तुम्ही हो तारणहार 
मेरे नन्हे हाथों से नमन 
प्रभु करो आज स्वीकार ..........
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