एक अकेला मैं ही हूँ
जो मस्त हूँ इस वीराने में
मालिक और नौकर भी मैं हूँ
मौत के कारखाने में
मेरा काम है चंदन को घीस कर नाली में बहाना
और फूल के खुशबू से गंदे कुत्तों को नहाना
आदत मेरी अब स्वभाव है
रोज ये मेरा धंधा है
आते जाते लोग ये कहते
पागल है ये अँधा है
मैं तो बस प्रतिबिम्ब तुम्हारा मुझे देख घबराते हो
तुम भी सब कुछ जानके भी फिर गलती क्यूँ दोहराते हो
नाली सी जीवन है कर ली खुश हो की अंजुली है भर ली
बंद हो गया डब्बे में और बेच दिया चैतन्य
तेरा जीवन है धन्य
मौत के डर से जीना छोड़ा
टट्टू बन घोडों संग दौड़ा
सोंच के ये की भाग भाग गर
भाग्य मैं अपनी बनाऊंगा
इस दौड़ के अंत में मैं तो
भाग्यशाली कहलाऊंगा
होना था आनंद जहाँ पे
वहां पे कुंठा भरी है आज
मैं तो हूँ पर्याय तुम्हारा
तुम बन गए अभिशप्त समाज ............
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