एक उदास मन की पीड़ा
काव्य में जब समाती है
कलम की आवाज से
कागज़ भी चौक जाती है
विद्रोह जारी अंतर्मन का
जीत उसकी चाह है
ह्रदय पर हावी है मस्तिष्क
चेतना गुमराह है
मन की पीड़ा है यथावत
ह्रदय है खंडित पड़ी
मन को मारना यहाँ
टेढी खीर है बड़ी ...........
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