क्या तिरस्कार अपमान क्या
जब हुए प्रतिज्ञाबद्ध यहाँ
तो शोषण क्या
कल्याण क्या
कल्याण क्या
खुले आँखों से देखूं मैं स्वप्न
कुछ कार्य आवश्यक करने का
जो घाव असंख्य सहे हमने
उन सब घावों को भरने का
माना की लम्बी है बहुत रात
पर आशा है की नव प्रभात
शीघ्र हर लेगी ये तिमिर घोर
बस देहरी पर आ गया भोर
पर इस क्षण की जो परिक्षा है
बस सही समय की प्रतिक्षा है
नहीं मन को यूँ घबराने दो
वो अवसर तो आ जाने दो
जब पञ्चजन्य की शंखनाद
रणभूमि को कर देगी पवित्र
उस रण के ही बेदी पर तो
उभरेगा जीवन का मानचित्र
उस मानचित्र को पाने को
दैनिक संघर्ष मिटाने को
मैं वचनबद्ध सिपाही हूँ
जो रच सके स्वर्णिम वर्तमान
विधाता की वैसी स्याही हूँ
नहीं मन को यूँ घबराने दो
वो अवसर तो आ जाने दो
जब पञ्चजन्य की शंखनाद
रणभूमि को कर देगी पवित्र
उस रण के ही बेदी पर तो
उभरेगा जीवन का मानचित्र
उस मानचित्र को पाने को
दैनिक संघर्ष मिटाने को
मैं वचनबद्ध सिपाही हूँ
जो रच सके स्वर्णिम वर्तमान
विधाता की वैसी स्याही हूँ