अब तो बस एक ही इक्षा है आनंद मिले
सुख दुःख , हर्ष और विषाद का जो चक्कर है
उनसे दूर कहीं जीवन से जा स्वछंद मिलें
हार और जीत के खेल में उलझा मन है जो
परे उसके अभिव्यक्ति पे ध्यान मेरा हो
रौशनी हो मेरे प्रारब्ध में जहाँ घनघोरतम अँधेरा हो
जीवन का पर्याय मात्र क्या आजीविका है
या फिर ईश्वर के किसी योजना का हिस्सा हूँ
जिस कहानी का कोई चरमोत्कर्ष (climax) नहीं
शायद रचयिता का वैसा गतिमान किस्सा हूँ
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