12 August, 2013

सम्मान से जीने का मानचित्र हो प्रत्यक्ष















मैं चाहता हूँ बस सम्मान से जीना
जो डीग्री से नहीं हैं ,
 उपाधी से नहीं है
उध्वेलित जो मन है
उसके समाधि से नहीं है
नहीं है वो सम्मान
किसी मेडल में प्रमाण में
और नहीं है महाप्रयाण में
जीवन जो मिला है ,कोई कारण तो होगा ठोस
या युहीं रहे जीते अनभिज्ञ और मदहोश
वही कारण और उद्देश्य अगर जीवंत हो जाए
भटकाव का सिलसिला त्वरित अंत हो जाए
जीवन को मिलजाए वही एक मात्र लक्ष्य
सम्मान से जीने का मानचित्र हो प्रत्यक्ष











No comments:

Post a Comment

Apna time aayega