मन के भीतर चुनाव चलता है 
जब कभी कोई बात खलता है 
जब कोई उठती प्रश्न अन्दर में 
घंटियाँ बजती मन के मंदर में 
कोई सागर की लहरें हो जैसे 
उठती गिरती हो समंदर में 
और तब कलाबाजी मन में 
होती उथल पुथल जीवन में 
तब सही चुनाव आवश्यक है 
उत्तर हो सही तेरा हक़ है 
आपको प्रतिउत्तर देना नही है 
प्रतिसाद हृदय से देना होगा 
इस चुनाव की आजादी को 
मौन अन्तराल में बोना होगा 
तभी जवाब सही आएगी 
मौन को शब्दों की अभिव्यक्ति मिल पाएगी .............
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