इस मौत के बाज़ार में
जिजीविषा जरूरी है
कौन कहता है की
जिन्दगी मजबूरी है
नौकरी जीवन का एक मात्र लक्ष्य
कैसे बन जाती है
और कैसे पूर्ण विराम लगा देते हो
खुशियों पे अपने
सताती रहती है तुम्हे बाटने से ज्यादा
बटोरने के सपने
तुम्हारे हर भाव के पीछे स्वार्थ है
और प्रेम के चाशनी में लपेटे हो पाखंड
दोस्ती के नाम पे ईमान बेचते हो
दिलों के बीच लकीर खीचते हो
आँखे बंद करने से बदलती नहीं सच्चाई
मुबारक हो तुमको तुम्हारी डिप्लोमेसी और तन्हाई
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