02 May, 2009

मजदूर हूँ मजबूरनहीं


मैं एक मजदूर हूँ

जीवन के भाग दौड़ में थक कर चूर हूँ

इस मशिनियत से जीवन का एहसास खो गया

चिंता तनाव कुंठा के ये बीज बो गया

मुझे मेरा बचपन लौटा दो

लौटा दो मन का शुकून

और वापस करो मेरे होठों की मुस्कान

नही चाहिए मुझे अपनी कोई पहचान

मैं जान चुका हूँ जीवन का सत्य

बंधन चाहें लोहे की हो या सोने की

आप तो हर हाल में गुलाम हैं

मजदूर हूँ मजबूरनहीं

आजादी ही मेरा पैगाम है

मुझे उड़ना था पंख को खोल

पर तुमने पंख काट दिया

मैं एक हो कर जी रहा था

पर तुमने बाँट दिया

शीक्षा के नाम पर बो दिए अंहकार

और शुरू हुआ शैक्षणिक अत्याचार

दिमाग के कूडेदान से सब खाली करना है

और लगाने है मन के हर एक कोने में

प्यार और विस्वास के दरख्त

आगया अब पंख पसार उड़ने का वक्त ............


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