मैं एक मजदूर हूँ 
जीवन के भाग दौड़ में थक कर चूर हूँ 
इस मशिनियत से जीवन का एहसास खो गया 
चिंता तनाव कुंठा के ये बीज बो गया 
मुझे मेरा बचपन लौटा दो 
लौटा दो मन का शुकून 
और वापस करो मेरे होठों की मुस्कान 
नही चाहिए मुझे अपनी कोई पहचान 
मैं जान चुका हूँ जीवन का सत्य 
बंधन चाहें लोहे की हो या सोने की 
आप तो हर हाल में गुलाम हैं 
मजदूर हूँ मजबूरनहीं 
आजादी ही मेरा पैगाम है 
मुझे उड़ना था पंख को खोल 
पर तुमने पंख काट दिया 
मैं एक हो कर जी रहा था 
पर तुमने बाँट दिया 
शीक्षा के नाम पर बो दिए अंहकार 
और शुरू हुआ शैक्षणिक अत्याचार 
दिमाग के कूडेदान से सब खाली करना है 
और लगाने है मन के हर एक कोने में 
प्यार और विस्वास के दरख्त 
आगया अब पंख पसार उड़ने का वक्त ............
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