तुम्हे सौंप दिया मैंने जो था नही मेरा 
चौपट थी नगरी छाया था अँधेरा 
ऐसे मैं कैसे कोई खुल कर जीता 
कितने समय खून घुट घुट कर पीता
आक्रोश भरा अंदर आंखों में था बिश्वास
जलेगी लंका अंहकार की ये भी था आभास 
अब सर झुका के तुमको करना है ये स्वीकार 
फैला रखा था तुमने आतंक अत्याचार 
और साथ में जो तुमने पाला था शिखंडी 
वो तो निकला तुमसे बड़ा घमंडी 
पर उसको जो आदत ऊँगली करने की 
लोगों के अंदर जहर भरने की 
मुस्किल हो रहा अब है लंगोटी सम्हालना 
आसान था लोगों पे कीचड़ उछालना 
जब नाश आता कुत्तों पे तो सहर भागते 
भौकने वाले कुत्ते नहीं काटते 
तुम्हारी फितरत है चाटना थूक के 
हम बिहारी थूक कर नहीं चाटते ..................
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