02 May, 2009

मुझे अपने कमजोरियों के परे जाना है


मुझे अपने कमजोरियों के परे जाना है

अपने ही मन के शंकाओं को आजमाना है

देखना है हर एक विसंगति जो मन के कोने में दबी है

परखना है हर वो घटना जिसकी मन में मलिन छवि है

आसान नही होता अपने मन के विरूद्व कोहराम

पर जिस तरह रौशनी और अँधेरा एक साथ नही होते

हर अँधेरा रौशनी में विलीन होता है

ठीक उसी तरह मन की कलुष

की पहचान ही उसका आखरी दिन होता है

उसी प्रयास को अंजाम देना है

मन जो बकवास करता उसे काम देना है

ताकि अंत हो सके बिल्ली चूहे की रेस

मन के किसी कोने में कुछ न रहे शेष

जीवन के अनुभूतियों को मिले नया आयाम

तभी वस्तुतः हो पायेगा ये युद्घ विराम .........



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