मुझे अपने कमजोरियों के परे जाना है
अपने ही मन के शंकाओं को आजमाना है
देखना है हर एक विसंगति जो मन के कोने में दबी है
परखना है हर वो घटना जिसकी मन में मलिन छवि है
आसान नही होता अपने मन के विरूद्व कोहराम
पर जिस तरह रौशनी और अँधेरा एक साथ नही होते
हर अँधेरा रौशनी में विलीन होता है
ठीक उसी तरह मन की कलुष
की पहचान ही उसका आखरी दिन होता है
उसी प्रयास को अंजाम देना है
मन जो बकवास करता उसे काम देना है
ताकि अंत हो सके बिल्ली चूहे की रेस
मन के किसी कोने में कुछ न रहे शेष
जीवन के अनुभूतियों को मिले नया आयाम
तभी वस्तुतः हो पायेगा ये युद्घ विराम .........
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