27 April, 2009

मेरा मुझी से अब कभी विच्छेद नही हो ..................


मैं अपने आप से बहुत दूर होता हूँ



जब मन की बात सुनने पे मजबूर होता हूँ



मन करता निरंतर जो बकवास है



पुरा करने में जिसे लगा सारा प्रयास है



आदत जो उसको है पड़ी कुछ बात ऐसे हों



आदमी के अंदर जज्बात ऐसे हों



उलझा रहे वो जाल में दुनिया की चाह में



कांटे हैं बो दिए उसने जीवन के राह में



मन के इन्ही करतूत को करना समाप्त है



बाहर प्रकट वो हो जो पहले से व्याप्त है



आनंद की धारा बहे कोई न खेद हो



मेरा मुझी से अब कभी विच्छेद नही हो ..................


26 April, 2009

मौन प्रार्थना ही मात्र इबादत मेरी ..............


मुझे जब मौन का एहसास हुआ

शब्दों के परे दुनिया का आभास हुआ

तब जो चेहरे पे तेज आई थी

और वजूद मेरी मुस्कुराई थी

मैं भी परिचित हुआ अंदर के उस इंसान से

जो कहीं दब चुका था बाहरी तूफ़ान से

मेरा ये यात्रा मन के परे जाने का

जो था सोया उसे झकझोर के जगाने का

अपनी सम्भावना को फिर से आजमाने का

और जीवन को नया रास्ता दीखाने का

स्वतः ही पुरे लगे होने देखे जो थे सपने

रहा न कोई दूसरा सभी लगे अपने

हर एक बाधा जो रस्ते में चली आती थी

वही परेशानी अब मंजिल के करीब लाती थी

नज़रिया के बदलने से नज़ारा बदला

जीवन की बहती नदी का किनारा बदला

अब तो मचलती हुई सागर में मिली जाती है

नदी कहाँ अब वो सागर ही कहलाती है

मौन की दुनिया ने मुझे है विस्तार दिया

मेरे हिस्से का जो था प्यार मुझे प्यार दिया

अब आनंद बन गई है आदत मेरी

मौन प्रार्थना ही मात्र इबादत मेरी ...............






25 April, 2009

मेरी लड़ाई ख़ुद के ही कमजोरियों से है


न रूपया ही कमाया है न पोक्केट में डॉलर है

हालत का मारा ये कोई इस्कोल्लर है

जिसकी आदत में शोध है इबादत में शोध है

और शोध ही बसा है हर दिल के कोने में

है फंसा इस जाल में कुछ इस तरह से ये

अभी बाकी बहुत है वक्त आजाद होने में

मुझे भी इसी रोग का अटैक हो गया

जीवन में जो सुकून था कहाँ वो खो गया

ऐसे में भी यहाँ कुछ लोग बसते हैं

हालत बुरे आपके तो कशीदे कसते हैं

मालिक जो बनने का इन्हे चढ़ गया शुरूर

मौजूद था जो मैं हुए ख्वाब चकनाचूर

मैं अपनी उसूलों से समझौता नहीं करता

तुम कोई भी हो तोप तुमसे मैं नही डरता

ये दुनिया बहुत बड़ी है फिर काहे का ये घमंड

लड़ना गर जो तुमको तो ब्रह्माण्ड है अखंड

मेरी लड़ाई ख़ुद के ही कमजोरियों से है

जिससे मैं जी चुराता हूँ उन्ही चोरियों से है

हर एक कदम मेरी आगे की तयारी है

आज भी ख़ुद से मेरी वो ज़ंग जारी है

मैं गिरता हूँ कई बार और फिर सम्हलता हूँ

झाड़ के फिर धुल आगे को निकलता हूँ

मेरी हर रचना इसी ज़ंग की कुछ अर्ध विराम है

मेरी अनुभवों की चिट्ठी , व्यक्तित्व के आयाम हैं

हुआ फैसला नहीं फिर क्यूँ मान लूँ मैं हार

जीता नहीं है जग हारा हूँ मैं नहीं



बोना अगर है कैक्टस तो फल कहाँ हो आम ..........


मैंने क्या किया मुझको क्यूँ आँखें दिखाते हो

मालूम मुझको है की तुम मुझे आजमाते हो

लगता हमेशा तुमको सब नौकर हैं तुम मालिक

इसी दंभ में तुने ही ख़ुद पुतवा लिया कालिख

तू शुक्र कर लोगों ने तुम्हे माफ़ कर दिया

जो पुत गया कालिख उसे भी साफ़ कर दिया

इन्साफ क्या करेगा बन्दे में है दम कहाँ

उस सर्व शक्तिमान ने इन्साफ कर दिया

बोना अगर है कैक्टस तो फल कहाँ हो आम

जो बोया पाप है उसीका है तो ये अंजाम

इस बार जो ऊँगली उठा तुम्हारा मेरी ओर

न हल्ला मचेगा न ही होगा कोई शोर

मैं तेरे पाप का घड़ा फोरुंगा येहीं फिर

अब न मुझको कोई डर न है कोई फिकिर .............


19 April, 2009

दीवारों के भी कान होते हैं


दीवारों के भी कान होते हैं

पर हम उनसे अनजान होते है

कहता मन हमसे निरंतर ये

कुछ दीवारें ऐसे होते हैं जिनका न प्रमाण होता है

मन में भी ऐसी दीवारें हैं , और हैं ऐसी ही कुछ बातें

बेच कर ईमान तुमने गर ,बटोरे ढेरो सौगातें

मैंने देखा है करीब से खोखलापन तेरे अन्दर का

डुगडुगी किसी और हांथो में नाचना उस उग्र बन्दर का

खून के आंसू भी रोने हैं

जो रहस्य तुमने दबाया था प्रकट उसको भी तो होने हैं

पाखंड के इस विसात पर तुम्हारे प्यादे लगते बौने हैं

मेरा क्या मैं तो मौन था न थी मुझमे तेरे सी अकड़

मैं तो बस एक आदमी हूँ आम

फिर गया जिसका कभी भेजा करदेगा खिस्सा सभी तमाम...


18 April, 2009

सामूहिक निषेध



जब गिरती है कोई गगन चुम्बी इमारत

तब साथ गिरते हैं आस पास के मकान भी

और धुल चाटती है ऐसे में ईमानदारी की झोपड़ी

इसे सामूहिक निषेध कहते हैं

इसी collateral डैमेज से मैंने ख़ुद को बचाया

जब त्यागा मैंने इनका छत्रछाया

ये अंहकार की इमारतों में बसे हुए

हिन् भावना के शिकार लोगों का अंत अवश्यम्भावी था

क्यूंकि ऊँचे होने का दंभ इनपे हावी था

भगवन इन तेजी से बदलती परिस्थितियों में तेरा ही सहारा है

मुझे तो सच्चाई के बुनियाद पे टिका अपना झोपड़ी ही प्यारा है......



17 April, 2009

सच्चे इंसान की आह भी होती अजीब है ..........


हर महल जिसकी बुनियाद झूठ पर टिकी होती है

एक दिन मिट्टी में मिल जाती है

और जो ख़ुद को मसीहा मान बैठा था महल में

उसके पांव तले की जमीन खिशक जाती है

राजनीति उतनी करो की न दिखे तुम्हारे अन्दर का जानवर

समझदारों के लिए मात्र इशारा काफ़ी है मान्यवर

थूक के चाटना तुम्हारा तहजीब है

सच्चे इंसान की आह भी होती अजीब है

वही आह तुम्हारे महल को मिट्टी में मिला सकती है

और badduan निकले अगर अंतर्मन से तो तुम्हारा वजूद मिटा सकती है....


16 April, 2009

जहाँ पर राह नही है , अपनी राह बनाओ ...................




जहाँ पर राह नही है , अपनी राह बनाओ


जब लगने लगे तुम्हे की थक गए कदम


नयी जोश जगाओ , नया उत्साह बनाओ


पंक्षियाँ कहाँ पदचिन्ह छोड़ते


आकाश में अपनी तुम पंख फैलाओ


उड्जाओ फिर वहां बंधन जहाँ नहीं


उस आसमान में जहाँ कोई निशान नही


तुमको ज़माने की क्यूँ हो कोई फिकर


जब नभ तुम्हारा है और है सभी शिखर


मुझको भी अब तेरे ही राह जाना है


अंदर जो सोया है उसे फिर से जगाना है


हर राह अब मेरी मंजिल दिलाएगी


हंसके जो जिन्दगी मुझे गले लगायेगी .









13 April, 2009

आयोडेक्स मलिए और हमारे जीवन से सदा के लिए निकालिये....

मेरे कुछ खास दोस्त जब दुश्मन बन गए
मुझे नीचा दीखने के क्रम में बिल्कुल अड़ गए
एक तो कहता है मेरा होना ही कांस्पीरेसी है
दूसरा कहता है सब की ऐसी की तैसी है
दोनों सर से पावं तक झूठ और मक्कारी में सराबोर हैं
फिर भी उनकी एक ऊँगली उठी मेरे ओर है
मैं अब भी येही कहता हूँ मेरे तरफ़ तो मात्र एक ऊँगली है
बाकी चार तो तुम्हारे गलती को बतला रहे हैं
फिर भी आप लोग क्यूँ चिल्ला रहे हैं
चिल्लाने से न दाढी मूछें आती हैं न सर के बाल
दुनिया समझ चुकी है आपके सर पर सवार frustration का बैताल
दर्द बहुत होगा अभी इलाज जरूरी है डॉक्टर से मिलिए
आयोडेक्स मलिए और हमारे जीवन से सदा के लिए निकालिये....

12 April, 2009

मुझे उड़ना है पंख पसार ....


मुझे उड़ना है पंख पसार करना है बातें नभ से

पर स्याह क्यूँ तेरा चेहरा ,देखे क्यूँ हतप्रभ से

मैंने सर का बोझ गिराया , थी बेचैनी उड़ने की

बहुत हुआ घुट घुट के जीना समय गई कुढ़ने की

मैं अपने फेफडों को चाहता हु बज्र बनाना

पंखों को फैलाकर दूर गगन में उड़ जाना ..............



जीत की हवस ............


जीत की हवस में शायद तुम ये भूल गए

की लड़ाई तुम्हारी ख़ुद से है

अपनी ही नसों में कूट कूट कर भरी अंहकार

इर्ष्या और द्वेष से तुम्हारा सामना है

हर हाल में जीत तुम्हारी हो

ये मेरे मन की चिर प्रतीक्षित कामना है

पर तुम्हारे इर्द गिर्द के टट्टू तुम्हे हमेशा

मुफ्त में उपदेश देंगे

देंगे सलाह की दुसमन दुनिया है

मेरी मानो क्रांति का वक्त आगया है

टट्टुओं से सावधान

गर चाहते हो अपनी अलग पहचान

तो आँखें खोलो और देखो कैसे

लोगों ने तुम्हरे चित को चुरा लिया है

तुम्हारे घर में ही आग लगा दिया है

और खड़ा होकर रोज देखता है बर्बादी को

देखना एक दिन तुम नंगे हो जाओगे

अपने ही राज में भिक्मंगे हो जाओगे

तब तुम्हे शायद मेरी बात याद आए

चेत जाओ इससे पहले की सब कुछ लुट जाए ....

11 April, 2009

माँ का प्यार बोरी में भी कहाँ समाता है.............


आज कोई बेटा जब रेलवे स्टेशन जाता है

पिता के हाँथ में बोरी देख घबराता है

पिता को ऐसे घूरता है जैसे गब्बर कालिया को

और कह रहा हो की पुरा इज्ज़त मिट्टी मा मिलायिदिये

पर माँ का प्यार बोरी में भी कहाँ समाता है

ट्रोली बैग में बेटा सिर्फ़ सैम्पल आता है

तुम्हारा गुस्सा बेबजह पिता पे जाता है

अरे वो तो माध्यम है जो माँ का मम्त्व तुम तक पहुचाता है

बाप के वात्सल्य का कर्ज बेटा क्या इस तरह चुकता है

मैं जवाब मांगता नहीं पर भावनाओं का कोई आकार नही होता

बोरी हो या बैग मेरे विचार से आपके इज्ज़त पर अत्याचार नहीं होता .....

अनोखी होबी


कुछ लोग होते हैं

जिनकी हॉबी होती है

अनोखी होबी

उक्षालते हैं कीचड़ दूसरों पर

मज़ा आता है उन्हें ऐसा करके

देखते हैं सामने वाले चेहरे पर शिकन

और खुश होते हैं

बस्तुतः ये तमाशा की रचना ख़ुद करते हैं

की इनके अंदर का दिवालियापन लोग देख न सकें

मैं ने देख लिया और आभास भी हो गया

तुम्हारे इरादे का और नपुंसकता का भी

बचाओ लंगोटी अपनी वरना नंगे होजाओगे

कितना तमाशा कर लो frustrated ही कहलाओगे

10 April, 2009

प्रोफेशनल अत्याचार ...............


मेरे अन्दर का सोया जानवर

जागने वाला है मान्यवर

और इसके कारण आप है

जो निरंतर मेरे अंतरात्मा को झख्झोर जाते हैं

और मैं प्रतिकार नहीं करता

वही ज्वालामुखी अब फटने वाली है

और जो क्रोध का लावा तीव्र गति से बाहर निकलने वाला है

उसकी ताप से भस्म होना लाजमी है तुम्हारा अंहकार

जल्द ही खत्म होने वाला है ये प्रोफेशनल अत्याचार ...............




मुझे क्रोध आता है


मुझे क्रोध आता है

जब अनायास कोई जीवन में आपके अवरोध लाता है

मेरा भी खून खौल जाता है

जब हंसती खेलती दुनिया में मेरी कोई आग लगाता है

मैं यूँ तो चुप रहता हूँ

इन घटनाओं में नहीं करता बाद बिवाद

इसे लोग मेरी कमजोरी समझते हैं

लेकिन वक्त आ गया है बताना है तुमको

अगर युहीं बार बार उकसाओगे तुम

तो निश्चय ही स्वयं banaooge अपने जीवन को जहन्नुम .............


09 April, 2009

कोरी उदासी मन में है , और क्यूँ है खालीपन .....


कोरी उदासी मन में है , और क्यूँ है खालीपन

इस जदोजहद में कहाँ , खो गए मेरे मन

दिल की भडास खुल के आप निकलते रहे

मन में नफरत के कुत्ते पालते रहे

आदत था आपका कीचड़ उक्षालना

वजूद जो छलनी करे, वो तेजाब डालना

नाको तले चबाये चना चाहते थे आप

पर क्या पता था थोथी अंहकार आपकी

उत्तरे गी सरे आम इज्ज़त जनाब की

मुझे प्रखर बिस्वास उसके इन्साफ की .......................





07 April, 2009

हम साथ चले थे पर तुम बदल गए


हम साथ चले थे पर तुम बदल गए

रफ़्तार सब की एक तुम निकल गए

फिर हुआ शुरू आरोप का सिलसिला

रह गए अकेले तुम्हे कुछ नही मिला

जो समझ रहे थे की जीत तेरी है

उसमे भी मेरे यार बहुत हेरा फेरी है

कभी गाय तो नही करती दूध का प्रचार

गलती तुम्हारी थी पन्नी में उलझ गए

अब कौन ये बताये की ग़लत कौन है

अपने ही मायाजाल में तुम आप फंस गए

जो साथ थे तेरे बने चेतना के चोर

अहंकार की अग्नि में तुम झुलस गए

है प्रार्थना मेरी दुसमन नही जग है

सभी उसी के रूप कहाँ कोई अलग है

मेरी येही दुआ तुम जाओ फिर जहाँ

धरती गले लगाये और चूमे आसमान ....................


बस्तुतः येही वो पूर्ण विराम है जहाँ यात्रा समाप्त होता है...


जीवन में हर कुछ ब्लैक एंड व्हाइट नही होता

कभी कभी shades of grey भी होते हैं

चेहरे पे भले दिखती हो हँसी

मन के किसी कोने में हम फुट फुट कर रोते हैं

मुझे पता नहीं की जिन्दगी की सकरी गली में

मैं कैसे जाऊंगा अंहकार के मुकुट को पहने हुए

इसे सर से उतारने को मैं बेचैन हूँ

करो मदद मेरी की मैं पार कर सकूँ ये रास्ता

और एक हो जाऊँ उस प्रेम के प्रकाश पुंज में

जहाँ दो से परे आनंद प्राप्त होता है

बस्तुतः येही वो पूर्ण विराम है जहाँ यात्रा समाप्त होता है...

जहाँ न कोई बंधन हो मुझे उस गाँव जाना है .......


जहाँ न कोई बंधन हो मुझे उस गाँव जाना है

अन्दर है जो कोलाहल उससे निजात पाना है

मुझे मालूम है कठिन बड़ा सफर मेरा मगर

मुझे अब ख़ुद नया रास्ता आजमाना है

मेरे भी दोस्त बहुत हैं और हैं साथी भी यहाँ

मगर मुझे तो प्यारा है छोटा सा वो जहाँ

मेरे अपने भी मुझको अब थोड़ा सनकी समझते हैं

करेगा ये तो अपनी मन की वो तो ये समझते हैं

मगर मेरेतो मात्र लक्ष्य है मन के परे जाना

जो सच्चा और सहज है उसीको है मुझे पाना ..........




05 April, 2009

घनी मुछों को मवाली वो बताते हैं




आज मुझे एक बात ये बताना है


की मूछें न हों तो पुरुषत्व पर सवाल


अनायास ही लोग उठाते हैं


और घनी मुछों को मवाली वो बताते हैं


ऐसे ही परेशान आत्मा से मुलाकात हो गई


मेरे वजूद पर उसकी कुंठा की बरसात हो गई


पता नहीं की कौन इसका दोषी है


मेरे विचार से ये उनके मन की मदहोशी है


जो नित नया कमेन्ट करते रहते हैं


लोग उनकी उदंडता को चुपचाप यु ही सहते हैं


पर पलट कर जो जवाब उनको दे देगा


वस्तुतः उनकी इज्ज़त तो वही लेले गा


अब समय उनका आने वाला है


चेहरा गोरा तो क्या मन मलिन कला है


बहुत बजाई लोगों की उसने


अब तो बस उसका बजने वाला है ......


आंखों में जो नमी आई है .............


आँखों में जो नमी आई है

क्या कोई गम या खुशी लायी है

या अनायास ही दबी से कोई

एहसास मचल आई है

जब भी नम ये आँखें होती है

तब आँखों के परे मन की आँखें रोती हें

आज फिर रो रही है वही नयन

आज फिर क्यूँ मचल रहा ये मन

मुझे तो मन को ये समझाना है

की दुश्मन नहीं ज़माना है

की हर घटना तो आगे की तैयारी है

और चलना है जो मंजिल तुझे प्यारी है ............






02 April, 2009

मेरी जिन्दगी की है अपनी लडाई ..........


चलो तुमको मैं एक गीत सुनादूं


आज शब्द फिर से वही दोहरा दूँ


की बनेगा जो दुश्मन जमाना हमारा


तू फिर भी न देना मुझको सहारा की


मेरी जिन्दगी की है अपनी लडाई


शिखर पे जो जाना तो कैसी चढाई


तुम्हे क्या है लगता सुबह क्या न होगी


ब्रह्मण हूँ मैं नहीं हूँ मैं भोगी


मुर्गों को जा के अभी तुम बता दो


सुबह तो है होना बांग दो तुम या न दो ................

एक तिनके से गुब्बारा फट जाता है


तुम आक्रोश का मोल क्या जानो

ख़ुद तो एक कुंठित इंसान थे तमाचा आख़िर लगा न

जिस तरह एक तिनके से गुब्बारा फट जाता है

उसी तरह तुम्हारा ये अहंकार फूटा है

तुम इतना गिर जाओगे मेरे कल्पना के परे था

और तुमने सिद्ध कर दिया की कुत्ते का पूँछ

सीधा नहीं होता चंदन लगाने से

बेहतर है उसे काट दो ताकि सवाल ही न रहे

घृणा होती है तुम्हारे करतूतों से

कैसे बचूंगा मैं तुम चाँद पागल कुत्तों से.....

01 April, 2009

इज्ज़त उतर गई है टोपी उतार लो ......


इज्ज़त उतर गई है टोपी उतार लो

झूठ के सहारे तुम सच को मार लो

अहंकार के पुजारी , संकीर्ण सोंच के व्यापारी

अत्याचार तुम करो और पूछो कौन अत्याचारी

बहुत सहा है हमने अब नहीं सहेंगे

तुम्हारे कैद में हम अब नहीं रहेंगे

मन से तो गिर चुके थे

नज़रों से भी गिरे हो

पागल हो तुम और

एकदम ही सिरफिरे हो

सलाहाकार है जो तेरा

तुमको डूबा ही देगा

मरना भी चाहो तुम तो

मौत न मिलेगा

खिलवाड़ दूसरो से अब कर के तो दीखाना

और जरा किसीके धैर्य को न आजमाना

इज्जत तो लुट गई है थूकेगा अब ज़माना

अब यहाँ रखा क्या काहे का आना जाना








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