25 April, 2009

बोना अगर है कैक्टस तो फल कहाँ हो आम ..........


मैंने क्या किया मुझको क्यूँ आँखें दिखाते हो

मालूम मुझको है की तुम मुझे आजमाते हो

लगता हमेशा तुमको सब नौकर हैं तुम मालिक

इसी दंभ में तुने ही ख़ुद पुतवा लिया कालिख

तू शुक्र कर लोगों ने तुम्हे माफ़ कर दिया

जो पुत गया कालिख उसे भी साफ़ कर दिया

इन्साफ क्या करेगा बन्दे में है दम कहाँ

उस सर्व शक्तिमान ने इन्साफ कर दिया

बोना अगर है कैक्टस तो फल कहाँ हो आम

जो बोया पाप है उसीका है तो ये अंजाम

इस बार जो ऊँगली उठा तुम्हारा मेरी ओर

न हल्ला मचेगा न ही होगा कोई शोर

मैं तेरे पाप का घड़ा फोरुंगा येहीं फिर

अब न मुझको कोई डर न है कोई फिकिर .............


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