02 April, 2009

मेरी जिन्दगी की है अपनी लडाई ..........


चलो तुमको मैं एक गीत सुनादूं


आज शब्द फिर से वही दोहरा दूँ


की बनेगा जो दुश्मन जमाना हमारा


तू फिर भी न देना मुझको सहारा की


मेरी जिन्दगी की है अपनी लडाई


शिखर पे जो जाना तो कैसी चढाई


तुम्हे क्या है लगता सुबह क्या न होगी


ब्रह्मण हूँ मैं नहीं हूँ मैं भोगी


मुर्गों को जा के अभी तुम बता दो


सुबह तो है होना बांग दो तुम या न दो ................

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